पू र्वी उत्तर प्रदेश का सम्पूर्ण इतिहास आध्यत्मिक एवं धार्मिक उत्कृष्ताओ से भरा पड़ा है | यहां की मिट्टी के एक -एक कण में आपार सांस्कृतिक लड़ियाँ फैली है | सन्त कबीर नगर जनपद के पूर्वी छोर पर आमी (अनोमा ) नदी के तट पर मगहर हिन्दू - मुस्लिम एकता का तीर्थ कहलाता है| जहाँ पर महान सूफ़ी सन्त कबीर दास का एक ही प्रांगण में समाधि व मजार दोनों बना हैं | यह स्थान गो- रखपुर से २७ किमी .पश्चिम व खलीलाबाद जनपद मुख्यालय से ७ किमी. पूरब मुख्य मार्ग पर स्थित है |
इतिहास के पन्ने में मगहर एक वैभवशाली स्थल है। परन्तु इसके विषय में तमाम भ्रांतियां पैदा की गई। मगहर मरे सो गदहा होए। इन्ही भ्रांतियों को तोड़ने के लिए सन्त ने मगहर का चुनाव किया। क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम रिदै बस मोरा। जो काशी तन तजै कबिरा, रामे कौन निहोरा। मगहर के इतिहास पर नजर डाले -
वैदिक संस्कृति १५०० ईसा पूर्व से ६०० ईसा पूर्व के काल को माना गया है। यह भूभाग इच्छवाकु वंश के सूर्यवंशी राजाओं के समय से ही कौशल देश का हिस्सा रहा।
शतपथ ब्राम्हण में कौशल का उल्लेख है। यह वैदिक आर्यों का देश रहा। अयोध्या के प्रतापी राजा राम के बेटे कुश ने कौशल पर राज्य किया।
महाभारत काल में पाण्डु पुत्र पाण्डवों व उनकी माता कुन्ती अज्ञातवाश के समय कुछ समय यहां व्यतित किया। मान्यता है कि ताम्र गढ़ (वर्तमान में तामेश्वेर नाथ स्थल ) जो मगहर से दछिण पश्चिम लगभग ७ किमी. पर स्थित है। माता कुंती ने भगवान शिव का पूजन व जलाभिषेक किया।
एक अन्य घटना का इतिहास है कि राजा विराट के गायों की रखवाली करते हुए भीम का आगमन। वर्तमान में गोरखनाथ मंदिर के समीप तालाब के पास भीम की लेटी हुई मूर्ति ,जो बहुत पुरानी है। पाण्डवों के आगमन का प्रमाण है।
बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय के अनुसार ६०० ईसा पूर्व भारत वर्ष १६ महा जनपदों में बटा रहा।यह भूभाग कौशल महा जनपद का अंग था।
५४० ईसा पूर्व संसारिक समस्याओं से व्यथित होकर ज्ञान की खोज में अपना राज्य त्याग कर सिद्धार्थ (बाद में गौतम बुद्ध ) ने ताम्र गढ़ (वर्तमान में तामेश्वेरनाथ ) में मुंडन करवाया तथा राजशी वस्त्र व वत्कल का त्याग किया।
अनोमा नदी (वर्तमान में आमी ) बौद्ध साहित्य की प्रसिद्ध नदी है। मुंडन के पश्चात सिद्धार्थ अपने घोड़े कंथक से इस नदी को पार किया। वह स्थान कुदवा (खुदवा नाला )कहलाया। मगहर से सटे ग्राम मुहम्दपुर कठार के बगल खुदउआ स्थित है।
५३४ ईसा पूर्व हर्यक वंश का संस्थापक बिंबसार बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसने मगध पर शासन करते हुये वैवाहिक सम्बन्धों से कई राज्यों को पर अपना अधिकार कर लिया। कौशल को मगध राज्य के अधीन कर लिया।
४९३ ईसा पूर्व बिंबसार का पुत्र अजात शत्रु मगध पर शासन किया। जनश्रुति है कि अजात शत्रु देशाटन के लिये इधर से गुजर रहा था।अस्वस्थ होने पर कुछ दिन विश्राम किया।कुछ चरवाहे लूट लिए। नामकरण मार्ग +हर जो कालांतर मे मगहर हो गया।
२६९ ईसा पूर्व मगध पर अशोक महान का शासन रहा।
युवान च्वांग के वर्णन के अनुसार ताम्र गढ़ के निकट मौर्य सम्राट अशोक के तीन स्तूप स्थित बताया गया है। महायान डीह ग्राम के आस -पास तीन डूहो के रूप मे आज भी विद्यमान है। जो मगहर से दो मील दछिण - पश्चिम स्थित है। *१
कोपिया टीला खलीलाबाद के उत्तर दिशा मे स्थित है, इस स्थान की खुदाई में कुषाण कालीन सिक्के ,कांच के चूडिया ,कांच की वस्तुये व मृदभाण आदि मिले। कुषाण काल के बहुत पहले से यहां काँच उद्योग विकसित था। सिक्कों पर कुषाण शासक विम कडफ़ाइसिस द्वारा प्रयुक्त नंदीपद ( ऊँ )जैसी आकृति अंकित है। *२
५०० ई. से ६०० ई. तक यह भूभाग मगध के नियंत्रण में था।
६०० ई. में गुप्त शासन के पतन के बाद नया शासक मौखरी हुआ। जो अपनी राजधानी कन्नौज को बनाया। हषवर्द्धन इस वंश का प्रमुख शासक रहा।
८३६ ई. से ८८५ ई. तक गुर्जर प्रतिहार मिहिर भोज का शासन।
१००० ई. में थारू जाति के मदन सिंह का इस भूभाग पर अधिकार।
मगहर में थारूओ का बहुत समय तक अधिपत्य रहा। जिनके प्रमाण मगहर व निकटस्थ घनश्यामपुर ,मुहम्दपुर कठार ,मोहद्दीनपुर आदि ग्रामों में फैला है। *३
११७० ई. से ११९४ ई. गहड़वाल वंश जयचन्द का शासन।
१२०० ई. में मुस्लिम शासक मोहम्मद गोरी का अधिकार। कन्नौज तुर्को के कब्जे में हो गया।
१२२५ ई. में इल्तुतमिश का बेटा अवध का गवर्नर बना। यह भूभाग अवध के कब्जे में आ गया।
१२७५ ई. में राजपूत सरनेट (श्रीनेत / सूर्यवंशी ) सर्वप्रथम आये। मुख्यतः मगहर में बसें। मगहर में सवरधीर राज के पास कोटिया के बड़े भूभाग पर आज भी अवशेष मौजूद है।*४
राजपूत वंश के प्रमुख चन्द्रसेन ने गोरखपुर व पूर्वी बस्ती से डोम कटारो को खदेड़ा। चन्द्रसेन के बाद उनका पुत्र जयसिंह उत्तराधिकारी बना। सरनेट कठेलवाड़ों ने बांसी ,मेहदावल व रतनपुर (मगहर ) में शासन।सरनेट राजा राम सिंह की कुलदेवी समय माता थी।
१३५१ ई. फिरोज तुगलक का दिल्ली पर शासन। जौनपुर नगर की स्थापना। १३९४ ई. जौनपुर के मलिक सरकार ख्वाज़ा जहां ने विद्रोही जमींदारों को पराजित कर अपना राज्य कन्नौज से बिहार तक फैलाया।
काशी के लहरतारा स्थान पर १३९८ ई. में कबीर साहब जन्म। नीमा और नीरू के पले और बढ़े।
१४७९ ई. मे बहलोल लोदी के कहने पर ख़्वाजा जहां ने जौनपुर को स्वतन्त्र राजधानी बनाया।
१४९४ ई. में सिकंदर लोदी का शासन। १५०४ ई. सिकंदर लोदी आगरा के आगमन के बाद जौनपुर आया। उस समय कबीर काशी के सिद्ध संत पुरुष हो गये थे। कुछ विधर्मियों ने सिकंदर साह से कबीर दास की शिकायत की। सिकंदर ने दंड देने का असफल प्रयास किया। *५
१५०३ ई. के लगभग मगहर में आगामी १२ वर्षो तक जल वृष्टि न होने के कारण अकाल।
१५१४ ई. में कबीर दास का मगहर आगमन। नवाब बिजली खान ने मगहर में जल वृष्टि कराने हेतु कबीर दास को ले आये। मगहर आने की जनमानस में तमाम कथाएँ हैं।
१५१५ ई. गुरुनानक जी गोरखपुर के गुरु द्वारा जटा शंकर आये थे।*६
सिद्ध बैषणव सन्त केसरदास के भण्डारे में गुरु नानक आदि सन्तों का कबीर दास से मिलन। केसरदास के नाम पर कसरवल ग्राम का नाम। गोरख तलैया आज भी प्रसिद्ध। यहाँ आमी नदी की धारा मुड़ गई हैं।
Bahut acchi zankari.
जवाब देंहटाएंSant Kabir ke Maghar aagman ke bare me likhe
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