सन्त कबीर : भारत में सामाजिक पुनर्जागरण
सन्त कबीर दास की जयन्ती पर विशेष आलेख
इतिहास में इसे अजब संयोग ही कहेगे , एक तरफ विश्व के कई यूरोपीय देशों में रिनेशा
(पुनर्जागरण ) हो रहा था . तो दूसरी तरफ भारत में भी पुनर्जागरण की हवा दछिणी प्रदेशों में शुरु होकर उत्तरी प्रदेशों में बहने लगा . सदियो से दबे - कुचले समाज में तत्कालीन शासक वर्ग , धर्म के ठेके दारो , मुल्ला व पंडितो - पुरोहितो पर गुस्सा -छोभ था . जिसे भारतीय संतो ने विशेष कर संत कबीर दास ने शोषित वर्ग की पंक्ति मे खड़ा होकर आवाज बुलन्द कर जनमानस के गुस्से का इजहार करते हुए लोगों के आत्म- सम्मान के लिए ललकारा और कहा -
कबिरा खड़ा बाजार में , लिये लुकाठी हाथ . जो घर फूके आपणा ,चले हमारे साथ .
उत्तर प्रदेश के पूर्बी ज़िलों में लुकाठी शब्द आग से जलते हुये लठे को कहते है ,यहा लुकाठी मशाल का पर्याय है .जो मशाल सन्त कबीर ने जलाई ,उसे समकालीन व परवर्ती सन्त कबियों ने कायम रखा .
यूरोपीय देशो में सामन्त बाद के विरोध और ईश् निन्दा के कारण कोपेरनिकश ,ब्रूनो ,गेलेलियो आदि न जाने कितनों को अपने प्राणों की बलि देनी पड़ी .कितनों को दर -दर की ठोकरे खानी पड़ी .कितनों को देस निकाला हुआ .
भारत में सन्त कबीर को भी शासक सिकन्दर लोदी ने सेख तकी के कहने पर गंगा में फेकने व हाथी से कुचलने जैसी सजा दी . (2 )
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