मगहर : कबीर साहब का निर्वाण
अहो मेरे गोविंद तुम्हारा जोर। काज़ी बकिवा हस्ती तोर।
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तिनी बार पतियारो लीना। मन कठोर अजहू न पतीना।
कबीर ग्रंथावली पृ -२१० ,रागु गौड़ *
कबीर साहब काशी में काज़ी से कहते है , अरे काज़ी तुम्हारे तीनों प्रयास असफल हुए। गंगा में डुबाने ,आग में जलाने व हाथी से कुचलवाने के सब प्रयास निष्फल हुए। तेरा कठोर मन अब भी नहीं पिघला।
अब मै काशी से ऊब गया, अब मै मगहर जा रहा हूँ।
पहिले दरसनु मगहर पाईओ ,पुनि कासी बसे आई।
गुरू ग्रंथ साहिब *
कबीर साहब कहते है काशी तो मै बाद में आया, पहले मगहर में अपने प्रभु का दरसन कर लिया हू।
हिरदै कठोर मरय़ा बनारसी ,नरक न बचया जाई। हरि का दास मरे मगहर ,सन्ध्या सकल तिराई।
कबीर ग्रंथावली पृ-२२४
साहब कहते है - कठोर हृदय वाले बनारसी ठग ,काशी में मरने पर भी नरक से नहीं बच सकते। कबीर तो मगहर में भी मर कर अमर रहेगा। और -
किआ कासी किआ मगहर, ऊखरू रामु रिदै जउ होंई।
गुरू ग्रंथ साहिब ,रागु धनासरी ३
मगहर में कबीर साहब के निर्वाण का हाल उनके शिष्य धर्मदास ,जो बाघव ग़ढ (रीवा ) के समीप के
रहने वाले थे। कबीर साहब के पक्के अनुआई थे। लिखते है -
मगहर में लीला एक कीन्हा , हिन्दू तुरक़ ब्रत धारी।
क़बर खोदाय़ परीक्षा लीन्हा ,मिटी गया झगडा भारी।
धर्मदास की शब्दावाली *
जनमानस में प्रचलित है कि कबीर साहब के निर्वाण के समय नबाब बिजली खां पठान कब्र में गाड़ना और बघेल राजा वीरसेन सिंह शव को हिन्दू प्रथानुसार दाह करना चाहते थे। किन्तु चादर उठाने पर शव के स्थान पर फूल मिले। धर्मदास कहते है -
खोदि क़े देखि क़बुर ,गुरू देह न पाईय़ा।
पान फ़ूल लै हाथ सेन फिरि आइया।
'मानु मेंटल एन्टिक्टव्टिस आफ़ द नार्थ वेस्टर्न प्राविसेज ' के लेखक डाक्टर फ़यूर ने लिखा है ,संवत १५०७ (१४५० ई ) में नबाब बिजली खां ने कबीर के कब्र के ऊपर रोज़ा बनवाया था। जिसका जीर्णोद्वार संवत १६२४ (१५६७ ई ) में नबाब फिदाई खां ने करवाया।
कबीर साहब के परवर्ती संत मलूक दास साफ -साफ कहते है -
काशी तज गुरू मगहर आये ,दोनों दीन के पीर ।
क़ोई गाड़े क़ोई अग्नि जरावै,ढूढा न पाया शरीर।
चार दाग से सतगुरू न्यारा ,अजरों अमर शरीर।
दास मलूक सलूक कहत है,खोंजो ख़सम कबीर।
और कबीर साहब मगहर के ही होकर मगहर में अमर हों गए। उसी अनोमा (आमी ) के तट पर, जिसके समीप तामेस्वर नाथ में सिद्धार्थ ने राजशी वस्त्र त्यागा ,मुंडन कराया और कुदवा(अब खुदवा नाला जो मगहर के दख्चिन दिशा में स्थित है इतिहासकार इसे अनोमा नदी कहते है ) पार कर सारनाथ के तरफ प्रस्थान किया।
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