बुधवार, 4 सितंबर 2013
शनिवार, 24 अगस्त 2013
मगहर : कबीर साहब का निर्वाण
अहो मेरे गोविंद तुम्हारा जोर। काज़ी बकिवा हस्ती तोर।
* * * * * *
तिनी बार पतियारो लीना। मन कठोर अजहू न पतीना।
कबीर ग्रंथावली पृ -२१० ,रागु गौड़ *
कबीर साहब काशी में काज़ी से कहते है , अरे काज़ी तुम्हारे तीनों प्रयास असफल हुए। गंगा में डुबाने ,आग में जलाने व हाथी से कुचलवाने के सब प्रयास निष्फल हुए। तेरा कठोर मन अब भी नहीं पिघला।
अब मै काशी से ऊब गया, अब मै मगहर जा रहा हूँ।
पहिले दरसनु मगहर पाईओ ,पुनि कासी बसे आई।
गुरू ग्रंथ साहिब *
कबीर साहब कहते है काशी तो मै बाद में आया, पहले मगहर में अपने प्रभु का दरसन कर लिया हू।
हिरदै कठोर मरय़ा बनारसी ,नरक न बचया जाई। हरि का दास मरे मगहर ,सन्ध्या सकल तिराई।
कबीर ग्रंथावली पृ-२२४
साहब कहते है - कठोर हृदय वाले बनारसी ठग ,काशी में मरने पर भी नरक से नहीं बच सकते। कबीर तो मगहर में भी मर कर अमर रहेगा। और -
किआ कासी किआ मगहर, ऊखरू रामु रिदै जउ होंई।
गुरू ग्रंथ साहिब ,रागु धनासरी ३
मगहर में कबीर साहब के निर्वाण का हाल उनके शिष्य धर्मदास ,जो बाघव ग़ढ (रीवा ) के समीप के
रहने वाले थे। कबीर साहब के पक्के अनुआई थे। लिखते है -
मगहर में लीला एक कीन्हा , हिन्दू तुरक़ ब्रत धारी।
क़बर खोदाय़ परीक्षा लीन्हा ,मिटी गया झगडा भारी।
धर्मदास की शब्दावाली *
जनमानस में प्रचलित है कि कबीर साहब के निर्वाण के समय नबाब बिजली खां पठान कब्र में गाड़ना और बघेल राजा वीरसेन सिंह शव को हिन्दू प्रथानुसार दाह करना चाहते थे। किन्तु चादर उठाने पर शव के स्थान पर फूल मिले। धर्मदास कहते है -
खोदि क़े देखि क़बुर ,गुरू देह न पाईय़ा।
पान फ़ूल लै हाथ सेन फिरि आइया।
'मानु मेंटल एन्टिक्टव्टिस आफ़ द नार्थ वेस्टर्न प्राविसेज ' के लेखक डाक्टर फ़यूर ने लिखा है ,संवत १५०७ (१४५० ई ) में नबाब बिजली खां ने कबीर के कब्र के ऊपर रोज़ा बनवाया था। जिसका जीर्णोद्वार संवत १६२४ (१५६७ ई ) में नबाब फिदाई खां ने करवाया।
कबीर साहब के परवर्ती संत मलूक दास साफ -साफ कहते है -
काशी तज गुरू मगहर आये ,दोनों दीन के पीर ।
क़ोई गाड़े क़ोई अग्नि जरावै,ढूढा न पाया शरीर।
चार दाग से सतगुरू न्यारा ,अजरों अमर शरीर।
दास मलूक सलूक कहत है,खोंजो ख़सम कबीर।
और कबीर साहब मगहर के ही होकर मगहर में अमर हों गए। उसी अनोमा (आमी ) के तट पर, जिसके समीप तामेस्वर नाथ में सिद्धार्थ ने राजशी वस्त्र त्यागा ,मुंडन कराया और कुदवा(अब खुदवा नाला जो मगहर के दख्चिन दिशा में स्थित है इतिहासकार इसे अनोमा नदी कहते है ) पार कर सारनाथ के तरफ प्रस्थान किया।
मंगलवार, 6 अगस्त 2013
कहै कबीर भल नरकहि जैहू
कासी - मगहर सम बिचारि
संत कबीर जी का मगहर आगमन और काशी को छोड़ कर बड़ा ही रोचक लगता है। एकदम उनकी उलटवासीयों की तरह। कबीर कासी के माहौल से खुद त्रस्त थे,पीड़ित मन से कहते है कि -मै क्यू कासी तजै मुरारी । तेरी सेवा-चोर भये बनवारी ।।
जोगी-जती-तपी संन्यासी। मठ -देवल बसि परसै कासी।।
तीन बार जे नित् प्रति न्हावे। काया भीतरि खबरि न पावे।।
देवल - देवल फेरी देही। नाम निरंजन कबहु न लेही।।
चरन-विरद कासी को न दैहू। कहै कबीर भल नरकहि जैहू।।
दिन में तीन -तीन बार गंगा में नहा कर ,खूब बड़े -बड़े टीके लगा कर कासी के मंदिरों का चक्कर लगा कर, अपने को भगवान का सबसे प्रिय होने का घमण्ड करने वाले लोगों के मन में खोंट है। तेरे सेवा में चोर -उचकै लगे है,मै कासी छोड़ मगहर जा रहा हूँ। इस कासी की दुर्गति अब नहीं देख सक -ता। और कासी -मगहर मेरे लिये समान है ,चाहे जहां मरु। और कहते है क़ि -
क्या कासी क्या ऊसर -मगहर, राम रिदै बसु मोरा।
जो कासी तन तजै कबीरा , रामे कौन निहोरा।
आदि ग्रंथ में एक पंक्ति है -
अब कहु राम कवन गति मोरी। तजिले बनारस मति भई थोरी।
सगल जनमु शिवपुरी गवाइआ।मरती बार मगहर उठि आइया।
कबीर के मन में कासी के राज -व्यवस्था के प्रति छोभ था ,समाजिक व्यवस्था डगमगा गया था। और कासी छोड़ मगहर आ गए। जो सबसे न्यारा: है,न कोई भेदभाव न कोई राग -द्वेस और न कोई वैर -भाव ,इन द्वंदों से परे ऊसर- मगहर। एक स्थान से दुसरे स्थान जाने का मन में कष्ट,मन की व्यथा को रोकते नहीं और कहते है - कहै कबीर भल नरकहि जैहू।
डॉ राम कुमार वर्मा आदि कई विचारकों ने कबीर का मगहर के प्रति जो लगाव है ,उसे कबीर का अपने जन्म -स्थान के प्रति भाव प्रदर्शित होना बताते है। जो भी हो मरते वक्त भी कबीर एकता और सौहार्द का जो बीज बोया वह अनन्त काल तक पुष्पित व् प्लवीत होगा। जो प्रेम का धागा संत कबीर ने बुना उसे देख मन कह उठता है कि -
नाचै ताना नाचै बाना , नाचै कूच पुराना।
री माई कों बिनै।
करगहि बैठि कबीरा नाचे,चूहें काट्या ताना।
ऱी माई को बिनै।
जो प्रेम -भाव का धागा कबीर करिघे पर कात रहे है , उसे कुतरने वाल़े समाज के चूहों से कबीर परेशान व हैरान है। और कह रहे है , अरे इसे किस तरीके से इन चूहों से बचाया जाए।
आदि - ग्रंथ में रागु रामकली में है कि - तोरे भरोसे मगहर बसिओ ,मेरे मन की तपति बुझाई। पहिले दरसनु मगहर प़ाइओ, पुनि कासी बसे आई।.
कबीर कहते है कि पहले हम मगहर में आप का दरसन पाकर ही कासी में आया हूँ।
आपके भरोसे मगहर जा रहा हू। मन की शांति मुझे मगहर में मिलेगी। मुझे कासी छोड़ देना ठीक है। कबीर का मगहर के प्रति आस्था -भाव व लगाव से विदित होता है कि कबीर मगहर से पूर्व परिचित थे। आज हमें उनके सब्दों को आत्मसात करने की जरुरत है। और अंत में कासी -मगहर सम बिचारि। कबीर के लिये चाहें कासी हो ,चाहें मगहर कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
रविवार, 23 जून 2013
सन्त कबीर : भारत में सामाजिक पुनर्जागरण-2
सिखों के प्रसिद्ध पुस्तक ग्रन्थ साहिब में सन्त कबीर पर हुए अत्याचार का बड़ा ही मार्मिक वर्णन है -
गंगे के लहरिया में टूट गई जन्जीर , मृग छाला पर बैठे कबीर .
कहे कबीर कोई संग न साथ , जल - थल राखत है रघुनाथ .
कहे कबीर कोई संग न साथ , जल - थल राखत है रघुनाथ .
भारत में भक्ति काल के संतों का भारतीय पुनर्जागरण में बड़ा ही योगदान रहा ,जिसका जन - मानस पर गहरा प्रभाव पड़ा .
- आखिन देखी का महत्व .
- अंध - विस्वास / धार्मिक विषयो के स्थान पर कर्म में विस्वास .
- लोक भाषा को बढ़ावा ,यथा - संस्कृत कूप गंभीर .
- अलोच्नातामक व अन्वेश / वैज्ञानिक प्रबृत पैदा करना .
- मानवता वादी विचार धारा का विकास .
- सामन्त -वाद का मुखर विरोध .
Sant Kabir :Bharat Me Samajik Punrjagran
सन्त कबीर : भारत में सामाजिक पुनर्जागरण
सन्त कबीर दास की जयन्ती पर विशेष आलेख
इतिहास में इसे अजब संयोग ही कहेगे , एक तरफ विश्व के कई यूरोपीय देशों में रिनेशा
(पुनर्जागरण ) हो रहा था . तो दूसरी तरफ भारत में भी पुनर्जागरण की हवा दछिणी प्रदेशों में शुरु होकर उत्तरी प्रदेशों में बहने लगा . सदियो से दबे - कुचले समाज में तत्कालीन शासक वर्ग , धर्म के ठेके दारो , मुल्ला व पंडितो - पुरोहितो पर गुस्सा -छोभ था . जिसे भारतीय संतो ने विशेष कर संत कबीर दास ने शोषित वर्ग की पंक्ति मे खड़ा होकर आवाज बुलन्द कर जनमानस के गुस्से का इजहार करते हुए लोगों के आत्म- सम्मान के लिए ललकारा और कहा -
कबिरा खड़ा बाजार में , लिये लुकाठी हाथ . जो घर फूके आपणा ,चले हमारे साथ .
उत्तर प्रदेश के पूर्बी ज़िलों में लुकाठी शब्द आग से जलते हुये लठे को कहते है ,यहा लुकाठी मशाल का पर्याय है .जो मशाल सन्त कबीर ने जलाई ,उसे समकालीन व परवर्ती सन्त कबियों ने कायम रखा .
यूरोपीय देशो में सामन्त बाद के विरोध और ईश् निन्दा के कारण कोपेरनिकश ,ब्रूनो ,गेलेलियो आदि न जाने कितनों को अपने प्राणों की बलि देनी पड़ी .कितनों को दर -दर की ठोकरे खानी पड़ी .कितनों को देस निकाला हुआ .
भारत में सन्त कबीर को भी शासक सिकन्दर लोदी ने सेख तकी के कहने पर गंगा में फेकने व हाथी से कुचलने जैसी सजा दी . (2 )
बुधवार, 27 मार्च 2013
Holi Hai........,
जोंगीरा सर रर .........,कबीरा सर रर ........,
साधों , ये कैसी फूहडता ,
होलीका दहन, मे किसे जलाते हो .
गावं -गावं, घूम कर कबीरा गाते हों .
जोगीरा सर रर ..........,कबीरा सर रर ........,
साधों , ये कैसी फूहड़ता ,
होरी गाते हो. खुशी मनाते हो .
फिर भी कबीर को, गाली के साथ गाते हों .
जोगीरा सर रर ......., कबीरा .सर रर .......,
जो होरियारा गाली बके, चले हमारे साथ ,
और इकठठा होकर , मगहर आम़ी घाट
जहाँ कबीरा खड़ा है, लिये पिचकारी हाथ ,
जाति धरम को त्याग कर ,
मिल बैठे राजा- रंक, फ़क़ीर .
अमीर- ग़रीब सब होली खेले ,
गावे कबीर -कबीर .
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कासी - मगहर सम बिचारि संत कबीर जी का मगहर आगमन और काशी को छोड़ कर बड़ा ही रोचक लगता है।...
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Kya kashi, Kya usar Maghar, Ram riday base mora. Jo kashi tan taje kabira. Rame kaun Nihora.